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Wednesday 24 February 2016

दाग




सफेद चादर पर पड़ा वो पहला दाग
जिसे रगड़ रगड़ कर धोया था मैंने
आज भी उतना ही गहरा है
उस दाग को गले लगाये आज भी मैं बैठी हूँ
तेरे बिस्तर के उसी कोने पर
कितना चाहा कितनी कोशिशें की
पर न ये सफेद दाग लगी चादर छूटी
और न ही तेरे बिस्तर का कोना छोड़ पायी
पलंग का एक सिरा थामे
चुपचाप आज भी सो जाती हूँ
हाथों की नर्माहट भी अब दरदरा सा रूप ले चुकी है
दाग छुड़ाने की कोशिश में
अब आत्मा भी दगीली हो चुकी है
घृणा और आत्मग्लानि से भरी मैं
खुद से ही लड़ते लड़ते फिर रुक जाती हूँ
और उस दाग को छुड़ाने की ताकत फिर जुटाती हूँ
तेरा ही लगाया हुआ है ये दाग
फिर मैं ही क्यूँ इससे स्याह रंग हो जाती हूँ
तेरी चादर कैसे सफेद है बिना किसी दाग के
मैंने ही क्यूँ थामा है तेरे बिस्तर का कोना
नहीं छूटता न छूटे , पूनम की रात में
इसी चादर को लपेटे
दगीले चांद के प्रकाश में
तारों का हाथ थामे चली जाउंगी
उस दाग को छुड़ाने की नाकामयाब कोशिश को छोड़
तेरे पलंग के सिरे से आज़ाद होकर !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!


तेरी मोहब्बत की पाक ज़ुबान



तेरी मोहब्बत की पाक ज़ुबान
मेरे कीचड़ दिल को कमल दे गयी
अब कीचड़ देखूं या पन्ने पलटती ख्वाब बूनूँ
मेरी रात की आंख फडकने लगी
शगुन पड़ने का अच्छा शगुन दे गयी
सदियों जो शिकवे किये
रंगों से परे जो मटमैले सपने बुने
तेरी मोहब्बत की पाक ज़ुबान
उन सपनों में रंग भर गयी
रात के अंधेरे में ,
मेरी ज़िंदगी के तालाब को रोशन कर गयी
उंची आसमानी दीवार को
पूनम के चांद की रोशनी दे गयी
टहनी पर टंगे मन को खुश्बू से लाद गयी
तेरी मोहब्बत की पाक ज़ुबान
मेरे हुस्न को इश्क़ के रंग से नहला गयी
मेरी नज़्म को कागज़ दे गयी
और मेरे होने को वजूद दे गयी
तेरी मोहब्बत की पाक ज़ुबान
मेरे इश्क़ को हदें दे गयी !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!

Tuesday 23 February 2016

मेरी बहन




मेरी बहन

एक परी है छोटी सी प्यारी सी
सबकी अम्मा बनकर रहती
बहन बहन कह कर मुझको समझाती
जादू की छड़ी लिये
सबका मन बहलाती
पापा को भी डांट लगाती
छोटी सी ये नन्हीं परी मेरी बहना कहलाती
खूब सताया था इसको बचपन में
खूब रूलाया भी था
याद है एक बार सीढी से गिराया भी था
लड़ते खेलते संग इसके पूरा बचपन बिताया था
जवानी के न जाने
कितने राज़ो का हमराज बनाया था
आज बहन बड़ी हो गयी
सयानी गुड़िया और सयानी हो गयी
नन्हीं परी को पंख मिले हैं
उंचे गगन के रंग मिले हैं
नन्हीं परी में खूब समझ है
आज समझ आता है
बहन तू छोटी होकर भी कितनी बड़ी है
मेरी अम्मा तो आज भी तू है
तू न हो तो अधूरी हूँ
बहन तू संग मेरे है
इसलिये आज भी खड़ी हूँ
खूब नाचे खुशियाँ तेरे आंगन में
तू यूँ ही उड़ती रहे
जब जब तू पथ में थकेगी
तेरी ये मोटी बहन साथ मिलेगी
हाथ थाम तेरा फिर तुझे ले बढ़ चलेगी
आबाद रहे तेरा दामन
यही दुआ हर वक़्त करेगी....!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!

Sunday 21 February 2016

इंतज़ार करना





भूल ही नहीं सकती
तुमसे किया वो वादा
आउंगी लौटकर इंतेज़ार करना
सब्र मत खोना
भरोसा रखना
आज मेरा चले जाना मजबूरी है
रुक सकती तो लौट के आने का
करती कभी ना वादा
उसी पेड़ के नीचे मिलना
उसी चाय के ठेले पर
मैं नहीं भूलूंगी कभी
याद रहेगा तेरा इंतेज़ार करना
तू बरसात में जब जब भीगेगा
मैं भी तड़पूंगी विरह की आग में
बस मुझे बेवफा मत समझना
जब जब नींद से जागेगा तू
मैं भी बुनुंगी स्वप्न पुन्रमिलन का
आज मेरा चले जाना मजबूरी है
रुक सकती तो लौट के आने का
करती कभी ना वादा
तू भी एक वादा करना
इंतेज़ार की घड़ियों से न थकना
वक़्त का काँटा धीमा होगा
तू घबरा कर हार न जाना
आउंगी लौटकर इंतेज़ार करना
उसी सड़क पर खड़े मिलना
जहाँ गुज़ारे थे घन्टों साथ
फिर से मेरा हाथ थामना
मुझको दूर कहीं ले जाना
भूल ही नहीं सकती
तुमसे किया वो वादा
आउंगी लौटकर इंतेज़ार करना
खुशियों के आंचल को फिर ओढ़ चलेंगे
रंगो से फिर इक बार
तू मेरा संसार सजाना
आउंगी लौटकर इंतेज़ार करना !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!!

Friday 19 February 2016

तीसरा पहर




रात के तीसरे पहर
मैं
घबरा कर उठ गयी थी
छाती पर मानों कोई भारी सा पत्थर रखा हो
पानी की घूंट ली
फिर चौखट पर तेरे कदमों की आहट सी पायी
मैं स्तभ्द सी खड़ी रही
सोचती रही
तेरे कदमों की ही आहट थी
या उन यादों की
इन खयालो की रात बहुत लम्बी हो गयी
भोर के इंतज़ार में
न जाने मेरी कितनी नींदें उड़ गयी
उस पहर न जाने कितनी बार सांकल टटोली
पर तेरी मौजुदगी न पा कर
मैं समझ गयी
बिस्तर पर लौट गयी
अधमरी सी अचेत
चारों ओर का सूनापन बता रहा था
न इस चौखट से अब तेर कोइ वास्ता रहा
न ही इस गली को तू याद रख पाया
छाती पर पड़ा पत्थर मानो और भारी हो गया
और रात का वो तीसरा पहर
हमेशा के लिये
आज भी वैसा ही है
मेरे ज़हन में ज़िंदा
छाती पर भारी पत्थर के साथ
मुझे जगाये रखे !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!